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Tuesday, January 11, 2011

कितना हक -रोशन वर्मा

माँ ! वे आये थे   
..........................बोल कर गए हैं ......
कि ये सब उनका है ........
ये पेड़, ये घोंसला.....
ये तिनके और फूस...
ये दाना, ये चुग्गा .....
ये ज़मीं, ये आसमां ......
ये मिट्टी, ये पानी ...
ये हवा, ये ख़ुश्बू .....
सारे खेत और खलिहान ....
ये नदी और पहाड़ .....
घाटियाँ और पाट ....
ये जंगल और झाड़ियाँ .....
ये कपडे ,ये लत्ते ....
घर-द्वार और बर्तन ....
ये रास्ता, ये मैदान .....
समय- बिहान......
ये जीवन और सांस .....
सोना और सपने .....
आशा और विश्वास 
......................
और माँ ! उसने यह भी कहा था ....
कि उसने खरीद लिया है 
सरकार से ये इलाका ...
.......और.... हमारा सब कुछ .....
और शुरू होगा कोई प्रोजेक्ट ....
शायद ...आज ...या फिर .....कल से ही . 
सच माँ ! क्या अब कुछ भी नहीं रहा हमारा ?
और सरकार सब कुछ बेच सकती है क्या ......?
तो मेरी शर्ट भी बिकवा दो ना   ...
देखो तो कितनी पुरानी हो गई है ! 
    

2 comments:

  1. सुभानाल्लाह .....!!

    आपकी कलम अनमोल है .....

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  2. हीर जी ! आपकी टिप्पणी से रोशन साहब की हौसला अफजाई हुयी है .....उनकी तरफ से शुक्रिया क़ुबूल फरमाएं.

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