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Wednesday, December 08, 2010

०४-आज की अभिव्यक्ति..."छींक आये तो लन्दन जाएँ " ..कौशलेन्द्र

दिनांक-०६-११-२००८, ....वो मौसम था चुनाव का... ..जब मैनें यह रचना भानुप्रतापपुर के चौराहे पर प्रदर्शित की थी .....नक्सलियों का आतंक  ऐसे मौकों पर और भी बढ़ जाता है. बाद में मुझे पता चला कि बी.एस.एफ़.और कोबरा बटालियन के लोगों को यह रचना पढ़ कर बड़ा मज़ा आया...कई लोगों नें तो श्वेत पट को अपने कैमरों में भी कैद कर लिया , लीजिये प्रस्तुत है-
ये उत्तर है, ये दक्षिण है, ये पूरब, ये पश्चिम है/
ये मेरी, वो तेरी भाषा, जाति-धर्म बेमेल है //
सभी भेड़िये बने रहनुमा, घूमें पूरे देश में /
रोज बन रहे नए कबीले, उलटे-सीधे वेश में //
मेरा-तेरा कहते-कहते...बांटो पूरा देश ये /
छूट न जाए, सब कुछ बांटो .....ये सत्ता-सत्ता खेल है //
खंड-खंड कर दो समाज के, बेचो फिर से देश ये /
बात करो आदर्शों की पर, ध्यान लगाओ वोट पे //
इसे हटाकर उसे सटा दो, इसे लड़ाकर उसे पटा लो /
उल्टा करके उसका उल्लू , अपना उल्लू सीधा कर लो //
मूल्य-वूल्य की बात करें क्यों, आदर्शों की राह चलें क्यों ?
हमको क्या भूखों मरना है, सत्ता से वंचित रहना है ?
ना-ना दीदी, ना-ना भैया...मन को मार नहीं रहना है /
कर  प्रपंच हमको हर भैया, कैसे भी सत्ता पाना है //
आओ हम भी टिकट जुगाड़ें, नहीं मिले तो बागी होकर /
इसे उखाड़ें, उसे पछाड़ें, कोई भी हम करें तमाशा ....कैसे भी एक टिकट कबाड़ें //
टिकट मिले तो नाचें-गायें, दारू बाटें, कपड़ा बाटें /
गली-गली में रगडा खाके, केवल झूठे वादे बाटें //
हार गए तो हर-हर गंगे, जीत गए तो मुर्गा खाएं /
यह भी खाएं ..वह भी खाएं, पाँच साल तक देश को खाएं //
खून पियें सारी जनता का, छींक आये तो लन्दन जाएँ /
सबसे प्यारा देश हमारा झूम-झूम के गाना गायें //



 

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