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Monday, December 27, 2010

तरक्की - दिनेश वर्मा

हमने काफी तरक्की की है
चाँद को छुआ है ......
मंगल में झांक आए....
गाँव त्यागकर
शहर आ गये .
अब हम सुखी हैं. 
फिर क्या हुआ ...गर .....
अब हमारे घर में आंगन नहीं 
तुलसी का धरा नहीं 
दौना का पौधा नहीं 
गाँव की चौपाल नहीं 
स्वच्छ हवा ......
और ...खुले मन का आदमी नहीं
हम सुख को तौल रहे हैं 
शहर के तंग जीवन में......
तमाम तरक्कियों के बीच
इधर-उधर भटकते हुए.    

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