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Monday, December 06, 2010

योग से भोग की ओर......दृष्टिकोण अपना-अपना

योग और आयुर्वेद आज अनजाने नाम नहीं रहे ......न जाने कितने लोग "रोज योग का प्रशिक्षण ले कर लाभान्वित हो रहे हैं" -ऐसा कहा जा रहा है . पिछले दिनों एक ऐसा ही रोगी मिला ज़ो अपने तरीके से योग का प्रयोग कर रहा था ....ध्यान देंगे, मैनें  " प्रयोग "  कहा. विवरण प्रस्तुत है - 
नाम - ................/ उम्र- लगभग १८ वर्ष/    लिंग- पुरुष /  व्यवसाय- कक्षा ग्यारहवीं का छात्र /   निवासी- ....गाँव 
c /o - नामर्दगी के लक्षण (E.D.& P.M.E.)
वैवाहिक स्थिति - अविवाहित /     योगाभ्यास की अवधि- पिछले दो वर्ष से. 
यह लड़का योग का बड़ा प्रशंसक था ...दुर्भाग्य से न जानें क्यों नियम ( ? ) से योग करने के बाद भी उसे लाभ नहीं हो पा रहा था ...अब वह आयुर्वेदिक नुस्खे ( औषधि ) की तलाश में हमारे पास आया था. मैंनें उसे कुछ परामर्श दिया पर वह संतुष्ट नहीं हुआ. मैं समझ गया अब यह नीम-हकीम के दरवाज़े भी जाएगा और लूटा जाएगा.
मैं योग के इस प्रयोग को लेकर किंचित विचलित हुआ ....न जाने कितने और भी लोग होंगे ऐसे जो योग को अपने-अपने तरीके से प्रयोग में ला रहे होंगे. इस उम्र के कई अविवाहित लोग "नुस्खे" की तलाश में हमारे पास आते रहते हैं ......पर इस युवक नें आचार्य रजनीश की याद दिला दी. उनकी एक पुस्तक- "सम्भोग से समाधि की ओर"  अपने ज़माने में बड़ी विवादास्पद रही है.......बहुत बाद में जब मैंने उसे पढ़ा तो रजनीश के दृष्टिकोण से संतुष्ट हुआ. पर इस युवक नें तो जैसे रजनीश के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया हो ..."योग से सम्भोग की ओर" .यह उपेक्षणीय  नहीं विचारणीय विषय है.
पहली बात तो यह कि क्या योग का यह भी एक उद्देश्य है ? दूसरे, क्या योग का ज्ञान देने से पूर्व पात्रता-अपात्रता का निर्णय नहीं होना चाहिए ? तीसरे, क्या अब " योगश्च्चित्त वृत्ति निरोधः " के स्थान पर योग की कोई नवीन परिभाषा बनाए जाने की आवश्यकता है ? और चौथे यह कि क्या हम योग को विकृत करने की मौन स्वीकृति नहीं दे रहे ?
आज उच्च शिक्षा के लिए पात्रता परीक्षाएं आयोजित की जा रही हैं ....क्या योग, जो कि एक श्रेष्ठ विज्ञान है, के लिए कोई पात्रता परीक्षा नहीं होनी चाहिए ? भारतीय ज्ञान-विज्ञान के प्रति ऐसी उपेक्षा का भाव घातक होगा ...यह निश्चित है . मैं पुरानी बात दोहराना चाहूंगा ....ज्ञान सर्व सुलभ तो हो पर हो सुपात्र के लिए ही. आज हम योग के भौतिक लाभों के प्रति लोगों को आकर्षित कर रहे हैं ....भीड़ इसीलिये उमड़ रही है .....यह दीवानापन इसीलिये है. ज़रा एक शिविर ऐसा लगा कर देखिये जिसमें लोगों को योग से सिर्फ मनुष्य बनाने का दावा किया जाय.....कोई नहीं आयेगा. मनुष्य कोई बनना ही नहीं चाहता.....लोग अर्थराइटिस, हृदय रोग, मोटापा ........आदि ठीक करने के लिए योग ( ? )सीख रहे हैं......चित्तवृत्ति के निरोध के लिए सीख रहे होते तो अब तक रिश्वतखोरी और कामचोरी का ग्राफ बहुत गिर गया होता. ....भाई मेरा तो पैमाना यही है ...मैं महर्षि पतंजलि की आत्मा से प्रार्थना करूंगा कि वे हम सबको सद्बुद्धि दें ...कि योगप्रेमी लोग योग को यदि उसके सही रूप में न अपना सकें तो कम से कम उससे छेड़खानी भी न करें. इति शुभम !              

2 comments:

  1. भैया,

    इस मुद्दे पर बड़ा कन्‍फ्यूजन है। फिलहाल योग का उद्देश्‍य स्‍वास्‍थ्‍य लाभ है, चित्त नियंत्रण तो बिलकुल ही नहीं है, और न ही इस बारे में योग के ब्रांड एम्‍बेसेडर बाबा रामदेव ही अपने वक्‍तव्‍यों में करते हैं। शायद उन्‍होंने जान बूझकर लोकप्रिय बनाने के लिए उद्देश्‍य का सरलीकरण किया होगा।

    द्वितीयक उत्‍पाद को प्राथमिक बता कर प्रचारित करना मार्केटिंग की नीति रही है। साबुन से कपड़े कैसे धुलते हैं, इसका जिक्र न होकर उसकी खुशबू कैसी आती है, यह बताया जाता है। लेकिन इससे प्राथमिक उत्‍पाद का महत्‍व कम नहीं हो जाता।

    आपके लेख ने मामला और जटिल कर दिया है। सुपात्र का चयन कैसे हो ? कौन करे ? इस मामले में फेयर कंसल्‍टेंसी कहाँ है ? यदि नहीं, तो नीम हकीम के चंगुल में फँसने के अलावा और क्‍या चारा है....

    इसलिए आप जैसे विज्ञ लोगों की भूमिका और जिम्‍मेदारी भी बढ़ जाती है, आयुर्वेद और योग के बारे में प्रचलित भ्रांतियों को दूर करने के लिए इस नए मीडिया का उपयोग करें। ब्‍लॉग के स्‍तर पर ही प्रचार-प्रसार करें। कम से कम हम जैसे नियमित पाठक इसका लाभ जरूर उठाएँगे।

    - आनंद

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  2. आनंद बाबू ! बने कहत हस भाई.....फेयर कसल्टेंसी कहाँ मिलही ?.....पर ओ टूरा ह जोग ले ज़ो काम करना चाहत हे एला कैसे पचाहूँ भला ? मतलब ये ......कि बने स्वास्थ्य बनाए बर कसरत हाबे .....फिजियोथेरेपी हाबे ........जिमखाना हाबे ........केहू चीज़ के कमी नई हे तब जोग ला का बर बदनाम करथे....कि दू साल मं फइदा नई होईस.
    अब्बीच एक ठन पोस्ट करे हों ...."The Science of Life " मं देखबे भला. आगू कोसिस रही कि स्वास्थ्य संबंधी उपयोगी लेख दे सकओं.

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