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Monday, March 23, 2009

आज की अभिव्‍यक्ति 1 - हमें गर्व है कि हम विकसित हो रहे हैं।

विकास के कौटिल्‍य ने चाहा
कि बेहद ख़ूबसूरत हों फूल
खिलें........ 
पहले से भी अधिक।
और सचमुच.......... ऐसा हो गया
परंतु 
कीमत ले ली इसकी ....
चुरा ली सुगंध.........., पी गया मकरन्‍द,
घोल दिया विष......... 
सारे उपवन में।
कलियाँ
विषकन्‍या सी खिलकर झूम उठीं
झूम उठे  हम भी
बन गए .............विषमानव ।

ऑक्‍सीटोसिन पोषित सब्जियों के साथ
कीटनाशकों से संरक्षित अनाज की
खाकर  रोटी
और पीकर .......नकली दूध
बड़ी निर्ममता से 
नपुंसक बन गए .......हम भी।
............इतने नपुंसक
कि खरीदकर खाते हैं विष
और उफ तक नहीं करते।
विषाक्‍त धरती बांझ होने लगी है...
कैंसर 
आमंत्रित अतिथि बन रहे हैं
और हमें गर्व है
कि हम विकसित हो रहे हैं।